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Nid:- A Short Stories.

 हिचकोले खाती रेल नदी नालो व पहाड़ो को पीछे छोड़ती छुक छुक करती आगे बढ़ती जा रही थी।रामसुख रेल की फर्स पर आराम से सो रहा था।वो वाराणसी से सासाराम जाने के लिए एक सुपरफास्ट रेल में सफर कर रहा था।वाराणसी में वह एक अफसर के घर खाना बनाने का काम करता था। आज वह पूरे 6 महीनों के बाद अपने घर जा रहा था।वह जब सासाराम से वाराणसी आ रहा था ।तो मालती की तबियत खराब थी।घर में एक 14 साल की लड़की भी थी शालू जो घर का सारा काम करती थी।रामसुख के साहब ने सासाराम के लिए कन्फर्म टिकट निकाल दी थी।यस वन में पर रामसुख जब ट्रैन में घुसा तो तोंद निकाले एक महाजन पहले से ही कब्जा कर के बैठे थे रामसुख को इतना हिम्मत नही हुआ की वो उन्हें सीट पर से हटने को कहे। संकोच में नही ......रामसुख में हिम्मत   ही नही थी की वो एक शब्द बोल सके ।वो वही गेट के पास कम्बल बिछा कर सो गया था।न जाने कब नीद आ गयी थी।उसे तो बस घर पहुचने की जल्दी थी।आखिर आया भी तो ऐसे ही था।मालिक ने उसे आते वक़्त बिस हज़ार रुपये दिए थे ।और रामसुख ने इन छ महीनों में अपने वेतन से 5 से दस हज़ार जोड़ लिया था। वह मालती का इलाज तो करवाना चाहता था पर पिछले बार वैद्य ने कह दिया था की ये रोग जान लेकर ही जाएगा तब से रामसुख को बस शालू की शादी की ही चिंता थी ।वो घर जाकर इतने पैसों में शालू का शादी कर लेगा अगर और कुछ लगा तो पीतल के बर्तन बेच देगा।अगर फिर भी आवश्कता पड़ी तो घर भी............लेकिन मालती .......वो कहा जाएगी .....खरीदने वाले से पक्का कर लूंगा की मालती के मरने के बाद ही घर पर कब्ज़ा करे।

में भी तो 60 का हो चुका हु।मालिक के घर जब तक रहा जाएगा रहूंगा फिर कही चला जाऊंगा और बाकी की ज़िन्दगी भाक्ति भाव में बिताऊंगा। वो यही सब सोच रहा था।की अचानक ट्रेन में हलचल होने लगी ट्रैन एक नहर के पुल से गिर गयी ।चारो तरफ चीख शोर और मातम था ।बचाव के लिए आस पास के ग्रामीण इकठ्ठे हो चुके थे।पर रामसुख अब भी गहरे नींद में सबसे अंजान सबसे मस्त गहरी नीद में सो रहा था।ये वो नीद था जो हर दुख सुख माया मोह को पीछे छोड़ आगे निकल जाता है।ये वो नीद था जहा किसी को अपनी बिटिया की शादी में दहेज नही देना था।ये चिर था ,स्थायी था,अद्भुत था।ये चिर निद्रा था।जहा एक बार मनुष्य पहुच गया तो हर दुख थम जाती है।

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